Once upon a time, in the vast realm of Moral stories in Hindi, there existed a treasure trove of tales imbued with invaluable life lessons.
एक समय, कहानी कहने के विशाल क्षेत्र में, अमूल्य जीवन पाठों से भरपूर कहानियों का खजाना मौजूद था। ये कोई सामान्य कहानियाँ नहीं थीं; वे अपने भीतर ज्ञान, दयालुता और समझ का सार लेकर आए। बात करने वाले जानवरों की करामाती कहानियों से लेकर आम लोगों की गहन यात्राओं तक, प्रत्येक कथा में एक जादुई रहस्य छिपा हुआ है, जो खोजे जाने की प्रतीक्षा में है। जैसे ही हम इस साहित्यिक साहसिक यात्रा पर आगे बढ़ेंगे, हमारा सामना अनेक पात्रों से होगा, जिनमें से प्रत्येक हमारे दिल और दिमाग पर एक अविस्मरणीय छाप छोड़ेगा। साथ मिलकर, हम नैतिकता की जटिलताओं का पता लगाएंगे, सहानुभूति, लचीलापन और करुणा के गुणों को अपनाएंगे और उन्हें अपने जीवन में लाएंगे। तो, मेरे साथ जुड़ें क्योंकि हम नैतिक कहानियों की अद्भुत कशीदाकारी को उजागर करते हैं, जहां कालातीत पाठ उन लोगों का इंतजार करते हैं जो युगों के ज्ञान से सीखना चाहते हैं।
शक्तिवान बनिए💪 दुर्बलता एक श्राप है…
अगर इस जगह कुत्ता पानी पी रहा होता, तो एक भी गाड़ी रुकना तो दूर, निकलते समय शीशा खोलकर भी कुत्ते को धमकाते हुए चलते…गाय पानी पी रही होती, तो भी सभी गाड़ियाँ करुणा भाव में नहीं रुकती, हॉर्न मारते हुए साइड से निकाल लेते…
लेकिन जब शेर पानी पीता है तो 1000 गाड़ियाँ भी रुकेंगी… और किसी की मजाल है कि, चाहे एक घंटा हो जाए, कोई हॉर्न बजा दे, सभी धीमी सांसे लेते हुए, ये देखेंगे कि गाड़ी लॉक तो है, और ये सोचेंगे कि बस शेर पानी पीकर चला जाए, हमारी तरफ ना आए…
भावार्थ ये है कि -: शक्ति ही आपकी परिचायक है, शक्तिवान बनिए💪 दुर्बलता एक श्राप है…
देव या दानव
आचार्य विनोबा भावे के बचपन का प्रसंग है उनके घर के आँगन में एक पपीते का वृक्ष था। वे उसको प्रीतिदिन पानी से सींचते थे। जब उसमे कच्चे फल आना शुरू हुआ तो उनका बालमन उन्हे खाने को हुआ। माँ ने कहा ”बेटे, अभी नहीं !कच्चे फल नहीं खाये जाते। “लम्बी प्रतीक्षा के बाद फल पके। उन्हे तोड़ा गया ,अच्छी तरह से काटे पपीते की फाँको को संवार कर थाल में सजाया गया। विनोबा के मन में अपनी मेहनत के फल चखने की अत्यधिक उत्सुकता थी।
जो दुसरो को खिलाकर या देकर खाता है, वह देव है और जो खुद के लिए रखता है वह दानव है
विनोबा जब पपीता खाने लगे तो माँ ने कहा “विनिया ! तुम देव बनना चाहते हो या दानव ? जो दुसरो को खिलाकर या देकर खाता है, वह देव है और जो खुद के लिए रखता है वह दानव है बताऔ तुम्हें क्या बनना है ?” विनोबा बोल उठे ”माँ मुझे देव बनना है।” माँ ने आज्ञा दी ”जाओ विनोबा इन पपीतों को पहले पड़ोसियों को बाटो। घर मे लगे हुए पहले फल का अधिकार पड़ोसियों को होता है।
”विनोबा ने माँ की आज्ञा मान कर अपने पड़ोसियों को एक -एक बाटा और पड़ोसी ने प्रेम से उनकी पीठ थपथपाते गये और कहा की ”वाह विनोबा !कितना मीठा पपीता लाये हो यह तुम्हारी मेहनत का फल है। ”बचे हुई पपीते को लेकर विनोबा अपने भाइयों को बाटकर खुद भी खाने लगे। माँ ने विनोबा से पूछा ”विनिया ! पपीते में कितनी मिठास है ? “विनोबा ने कहा “अम्मा ! पड़ोसियों की प्रेम की थपकी में जो मिठास थी वह इस पपीते में कहा है ? “विनोबा में ‘वसुधेव कुटुम्ब्कम ‘यानि की सारा विस्व ही अपना परिवार है ,की भावना का अंकुरण करने का सेय उनकी माँ को ही था। अपने जीवन में इस भावना का उन्होने जन – जन में प्रसार किया।